Monday, December 24, 2012

अश्रू पवित्र हैं, गंगाजल हैं !

कभी प्रेम की हाला हैं
कभी क्रोध की ज्वाला हैं !

कभी मिलन की आस हैं
कभी जुदाई का एहसास हैं !

कभी पीड़ा के धतूरे हैं
कभी सुखों के वो पल अधूरे हैं !

कभी ममता के यह प्रतीक हैं
कभी यादों के अतीत हैं !

करुणा की सरिता हैं !
अश्रू पवित्र हैं, गंगाजल  हैं !

नयन सपनो के घरोंदे  सजाते हैं
दिल फूलो के उपवन बसाते हैं !
कल्पनाओ के पंछी डेरा डालते हैं
जीवन का राग सुनाते हैं !

सपने टूटते हैं ,
आँखों में कांच चुभते हैं !
पतझड़ के मौसम में
बाघ भी उजड़ते हैं !

अश्रू में घूल कर यह बह जाते हैं
घावो को  दवा कर जाते हैं !
बसंत का बिगुल बजा जाते हैं
फिर से सब पावन कर जाते हैं !

जीवन मात्र साँसों का व्यापार नहीं
यह भावनायो का भी ज्वार हैं !

जीवन बहूत सरल हैं, सजल हैं
क्योकि अश्रू पवित्र हैं , गंगाजल हैं !

-प्रतीक