Friday, June 28, 2013

  मोहब्बत में वफादारी से बचिये
   जहाँ तक हो अदाकारी से बचिये

        हर एक सूरत भली लगती है कुछ दिन
 लहू की शोब्दाकारी से बचिये

शराफत आदमियत दर्द मंदी
  बड़े शहरों में बीमारी से बचिये

       ज़रूरी क्या हर एक महफ़िल में आना
   तकल्लुफ की रवादारी से बचिये
 
  बिना पैरों के सर चलते नहीं हैं
      बुजुर्गों की समझदारी से बचिये....
                                                                                    
                                                                                                                  Nida Fazli

दिल में न हो जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

कुछ लोग यूँ ही शहर में खफा हैं
हर एक से अपनी भी तबियत नहीं मिलती

देखता था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिस से तेरी सूरत नहीं मिलती

हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फुर्सत नहीं मिलती...

- Nida Fazli

Thursday, June 6, 2013

कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं

 कटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पाँव को मेरे
कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं !

हवाओं में न जाने आज क्यों कुछ-कुछ नमी-सी है,
डगर की उष्णता में भी न जाने क्यों कमी-सी है,
गगन पर बदलियाँ लहरा रही हैं श्याम-आँचल-सी
कहीं तुम नयन में सावन छिपाए तो नहीं बैठीं।

अमावस की दुल्हन सोई हुई है अवनि से लगकर,
न जाने तारिकाएँ बाट किसकी जोहतीं जग कर,
गहन तम है डगर मेरी मगर फिर भी चमकती है,
कहीं तुम द्वार पर दीपक जलाए तो नहीं बैठीं !

हुई कुछ बात ऐसी फूल भी फीके पड़ जाते,
सितारे भी चमक पर आज तो अपनी न इतराते,
बहुत शरमा रहा है बदलियों की ओट में चन्दा
कहीं तुम आँख में काजल लगाए तो नहीं बैठीं!

कटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पाँव को मेरे,
कहीं तुम पंथ सिर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं
बालस्वरूप राही