उजला ही उजला शहर होगा
जिस में हम तुम बनायेंगे घर
दोनों रहेंगे कबूतर से
जिस में होगा न बाजों का डर
मखमल स नाज़ुक दीवारों भी होंगी,
कोनो में बैठी बहारें भी होंगी
खिड़की की चौखट भी रेशम की होगी
संदल से लिपटी हाँ सेहन भी हओंगी
चंदन की खुशबू भी टपकेगी छत से
फूलों का दरवाज़ा अखोलेंगे झट से
द्दोलेंगे मई की हवा के झोंके
आँखों को छू लेंगे गर्दन भिगो के
आँगन में बिखरे पड़े होगने पत्ते
सूखे से नाज़ुक से पीले छिताक्के,
पाओ को नंगा जो करके चलेंगे,
चरपर की आवाज़ से वो बजेंगे
कोयल कहेगी की मैं हम सहेली,
मैंना कहेगी नहीं तू अकेली,
बतताख भी चोंचो में हस्ती सी होगी,
बगुले कहेंगे सुनो अब उठो भी
हम ओहिर भी होंगे पड़े आंख मूंदे,
कलियों की लड़ियाँ दिलों में हाँ,
भूलेंगे उस पार के उस जहां को,
जाती है कोई डग्गर
चांदी के तारों से रातें बुनेंगे तोह चमकीली होगी सहर
आओगे थक कर जो हाँ साथी मेरे,
कंधे में लुंगी टिका साथी मेरे,
बोलोगे तुम जो भी साथी मेरे,
मोती सा लुंगी उठा साथी मेरे,
पलकों की कोरों पे आये जो आसूं,
मैं क्यूँ डारूंगी बता साथी मेरे,
ऊँगली तुम्हारी तोह पहले से होगी,
गालों पे मेरे तोह हाँ साथी मेरे,
तुम हँस पड़ोगे तोह मैं हँस पडूँगी
तुम रो पड़ोगे तोह मैं रो पडूँगी,
लेकिन मेरी बात इक याद रखना
मुझको हमेशा ही हाँ साथ रखना,
जुडती अहअन यह ज़मीन आसमान से
हद्द हाँ हमारी शुरू हो वहां से तारों को छुलों ज़रा सा संभल के,
उस चाँद पे जहात से जाये इसल के,
बह जाए दोनों हवा से निकलके
सूरज भी देखे हमें और जल के,
होगा नहो हम पे मालूम साथी,
तीनो जहां का अससर राहों को रहे भुलायेंगे साथी हम, ऐसे हाँ होगा सफ़र
जिस में हम तुम बनायेंगे घर
दोनों रहेंगे कबूतर से
जिस में होगा न बाजों का डर
मखमल स नाज़ुक दीवारों भी होंगी,
कोनो में बैठी बहारें भी होंगी
खिड़की की चौखट भी रेशम की होगी
संदल से लिपटी हाँ सेहन भी हओंगी
चंदन की खुशबू भी टपकेगी छत से
फूलों का दरवाज़ा अखोलेंगे झट से
द्दोलेंगे मई की हवा के झोंके
आँखों को छू लेंगे गर्दन भिगो के
आँगन में बिखरे पड़े होगने पत्ते
सूखे से नाज़ुक से पीले छिताक्के,
पाओ को नंगा जो करके चलेंगे,
चरपर की आवाज़ से वो बजेंगे
कोयल कहेगी की मैं हम सहेली,
मैंना कहेगी नहीं तू अकेली,
बतताख भी चोंचो में हस्ती सी होगी,
बगुले कहेंगे सुनो अब उठो भी
हम ओहिर भी होंगे पड़े आंख मूंदे,
कलियों की लड़ियाँ दिलों में हाँ,
भूलेंगे उस पार के उस जहां को,
जाती है कोई डग्गर
चांदी के तारों से रातें बुनेंगे तोह चमकीली होगी सहर
आओगे थक कर जो हाँ साथी मेरे,
कंधे में लुंगी टिका साथी मेरे,
बोलोगे तुम जो भी साथी मेरे,
मोती सा लुंगी उठा साथी मेरे,
पलकों की कोरों पे आये जो आसूं,
मैं क्यूँ डारूंगी बता साथी मेरे,
ऊँगली तुम्हारी तोह पहले से होगी,
गालों पे मेरे तोह हाँ साथी मेरे,
तुम हँस पड़ोगे तोह मैं हँस पडूँगी
तुम रो पड़ोगे तोह मैं रो पडूँगी,
लेकिन मेरी बात इक याद रखना
मुझको हमेशा ही हाँ साथ रखना,
जुडती अहअन यह ज़मीन आसमान से
हद्द हाँ हमारी शुरू हो वहां से तारों को छुलों ज़रा सा संभल के,
उस चाँद पे जहात से जाये इसल के,
बह जाए दोनों हवा से निकलके
सूरज भी देखे हमें और जल के,
होगा नहो हम पे मालूम साथी,
तीनो जहां का अससर राहों को रहे भुलायेंगे साथी हम, ऐसे हाँ होगा सफ़र