घोंसला बनाने में ..
हम यूँ मशगूल हो गए ..!
कि उड़ने को पंख भी थे ..
ये भी भूल गए ..!!
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-Abhay kumar Gupta
हम यूँ मशगूल हो गए ..!
कि उड़ने को पंख भी थे ..
ये भी भूल गए ..!!
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शाम के साये में सूरज को छुपाने निकले
हम दिये ले के अंधेरों को जलाने निकले
हम दिये ले के अंधेरों को जलाने निकले
और तो कोई न था जो जुर्म ए बगावत करता
एक हम ही थे जो ये रस्म निभाने निकले
एक हम ही थे जो ये रस्म निभाने निकले
शहर में दश्त में सेहरा में भी तुझको पाया
ए गम ए यार तेरे कितने ठिकाने निकले
ए गम ए यार तेरे कितने ठिकाने निकले
चाँद निकला तो मैं लोगों से लिपट कर रोया
ग़म के आंसू थे जो खुशियों के बहाने निकले!!
ग़म के आंसू थे जो खुशियों के बहाने निकले!!
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-Abhay kumar Gupta
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