Friday, January 6, 2017

घोंसला बनाने में ..
हम यूँ मशगूल हो गए ..! 
कि उड़ने को पंख भी थे ..
ये भी भूल गए ..!!

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शाम के साये में सूरज को छुपाने निकले
हम दिये ले के अंधेरों को जलाने निकले
और तो कोई न था जो जुर्म ए बगावत करता
एक हम ही थे जो ये रस्म निभाने निकले

शहर में दश्त में सेहरा में भी तुझको पाया
ए गम ए यार तेरे कितने ठिकाने निकले
चाँद निकला तो मैं लोगों से लिपट कर रोया
ग़म के आंसू थे जो खुशियों के बहाने निकले!!

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-Abhay kumar Gupta

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