Saturday, January 7, 2017

वो बर्फ़ का शरीफ टुकड़ा,
जाम में क्या गिरा..
धीरे धीरे, खुद-ब-खुद,
शराब हो गया..!!
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अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा
जहाँ लोग मिलते कम, झांकते ज़्यादा है...
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मेरी जेब में ज़रा सा छेद क्या हो गया..
सिक्को से ज़्यादा रिश्ते सरक गए !!
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किस्सो मे सुना करता था,, एक गिद्धों वाली घाटी है,,,!!
कमबख्त ज़िन्दगी की ज़रूरतों ने वो मंजर दिखा दिया,,,,!!!!
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मतलब निकल जाने पर पलट के देखा भी नही तुमने
रिश्ता तुम्हारी नज़र में कल का अखबार हो गया |
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उलझा हुआ एक धागा हूँ मैं,
सुलझने की चाह में,
रोज थोड़ा-थोड़ा टूट रहा हूँ मैं ..!!
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सच को तमीज़ ही नहीं बात करने की....
झूठ को देखो, कितना मीठा बोलता है....!!

-PT

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